अल्पसंख्यक असुरक्षा: प्रमुख बिंदु
- हिंसक घटना: अल्पसंख्यक असुरक्षा: धार्मिक भीड़ ने चार मुस्लिम युवकों की पिटाई की।
- पुलिस उपेक्षा: हमला पुलिस की मौजूदगी में हुआ।
- राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: विपक्षी दलों ने उत्तर प्रदेश सरकार को घेरा।
- सामुदायिक तनाव: AMU में ‘बीफ बिरयानी’ विवाद ने बढ़ाई बेचैनी।
1. भीषण हमले की कहानी: क्या हुआ उस दिन?
अल्पसंख्यक असुरक्षा: 9 फरवरी 2025 को, अलीगढ़ के हरदुआगंज इलाके में चार मुस्लिम युवक मांस ले जा रहे थे। अचानक एक हिंदुत्व भीड़ ने उन्हें रोक लिया। फिर भीड़ ने उन पर लाठियों और पत्थरों से हमला किया। उनकी गाड़ी को आग लगा दी गई। यह सब पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में हुआ, जिन्होंने शुरू में हस्तक्षेप नहीं किया। हालांकि युवकों के पास मवेशी वध के सभी कानूनी दस्तावेज़ थे ।
अल्पसंख्यक असुरक्षा: अल्पसंख्यक असुरक्षा का स्याह सच
इस घटना ने उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक असुरक्षा की गंभीर समस्या उजागर की। पीड़ितों में एक शाकिर नाम का युवक शामिल था। उसने बाद में बताया: “हमने पुलिस से गुहार लगाई, पर उन्होंने केवल तमाशा देखा।” अस्पताल पहुँचने तक सभी के शरीर खून से लथपथ थे। उनमें से एक की हालत गंभीर थी।
2. पीड़ितों की आवाज़: “हमारा अपराध सिर्फ काम करना था”
जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (JNMC) के अस्पताल में भर्ती, 22 वर्षीय आमिर ने दर्द भरे शब्दों में बताया: “मैं तीन साल से मांस परिवहन का काम कर रहा हूँ। इससे पहले कभी ऐसी मार नहीं पड़ी।” उसकी बाईं बांह में फ्रैक्चर है। उसके साथी युसूफ की सांस लेने में तकलीफ हो रही है। हमले के बाद से वह बार-बार दम घुटने का अहसास करता है ।
अल्पसंख्यक असुरक्षा: संस्थागत समर्थन का प्रयास
इसके बाद, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) की छात्र संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन (MSF) ने पीड़ितों से संपर्क किया। MSF अध्यक्ष मोहम्मद सज्जाद ने कहा: “यह हमला पहचान और आजीविका पर था।” उन्होंने कानूनी सहायता का वादा किया। भारतीय यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के सांसद हरिस बीरन ने भी हस्तक्षेप किया। उन्होंने पीड़ितों से फोन पर बात की ।
3. विवादों के घेरे में AMU: बीफ बिरयानी प्रकरण
हमले के ठीक पहले, AMU परिसर में एक विवाद खड़ा हो गया। सर शाह सुलेमान हॉल में एक नोटिस लगा। उसमें “चिकन बिरयानी” के स्थान पर “बीफ बिरयानी” परोसने की बात कही गई थी। बाद में प्रशासन ने इसे टाइपिंग त्रुटि बताया । परंतु पुलिस ने तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। इसमें धारा 302 (धार्मिक भावनाएं आहत करना) लगाई गई ।
अल्पसंख्यक असुरक्षा का राजनीतिकरण?
इस बीच, समाजवादी पार्टी (SP), कांग्रेस और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने एसएसपी कार्यालय के बाहर नारेबाजी की। उनका आरोप था: “राज्य सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफल रही है।” इस घटना ने सामुदायिक तनाव को बढ़ा दिया। परिणामस्वरूप, स्थानीय मुस्लिम समुदाय में भय का माहौल है ।
4. पुलिस प्रतिक्रिया: जांच का वादा, पर सवाल बरकरार
सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन के एसएचओ राजवीर सिंह ने बताया: “हमने भारतीय न्याय संहिता के तहत मामला दर्ज किया है।” उन्होंने आगे कहा: “गहन जाँच चल रही है।” फिर भी पीड़ित परिवार संतुष्ट नहीं हैं। उनका सवाल है: “पुलिस ने तुरंत कार्रवाई क्यों नहीं की?” इस मामले में अब तक किसी गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं हुई ।
अल्पसंख्यक असुरक्षा: भीड़ हिंसा का बढ़ता ग्राफ
दरअसल, उत्तर प्रदेश में भीड़ हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। 2023-24 में ऐसे 64 मामले दर्ज हुए। इनमें से 70% पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय से थे। इस तरह अल्पसंख्यक असुरक्षा एक गंभीर चुनौती बन गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, अक्सर कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ हिंसा रोकने में विफल रहती हैं ।
5. सामाजिक प्रभाव: डरी हुई आँखें, सिमटता स्पेस
हमले के बाद, स्थानीय मांस व्यापारी अपना काम बंद करने पर मजबूर हैं। इब्राहिम, जो 20 साल से यह काम कर रहे थे, कहते हैं: “अब डर लगता है।” उनके तीन बच्चे स्कूल जाते हैं। किराए का घर भी है। आय के स्रोत बंद होने से परिवार संकट में हैं। कई परिवारों ने बच्चों को स्कूल से निकाल लिया। उन्हें सुरक्षा की चिंता सता रही है ।
अल्पसंख्यक असुरक्षा और आर्थिक असर
इस घटना का आर्थिक प्रभाव भी गहरा है। अलीगढ़ के मांस उद्योग से 5,000 परिवार जुड़े हैं। अब लगभग 40% दुकानें बंद हो चुकी हैं। नतीजतन, बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। छोटे व्यापारी ऋण के जाल में फँस रहे हैं। इस प्रकार, अल्पसंख्यक असुरक्षा ने आजीविका संकट को जन्म दिया है। सामाजिक एकता भी खंडित हुई है 4।
6. न्याय की राह अल्पसंख्यक असुरक्षा : क्या मिलेगा इंसाफ़?
पीड़ितों को कानूनी सहायता देने के लिए MSF और IUML ने हाथ बँटाया है। सांसद हरिस बीरन ने वादा किया: “हम दोषियों को सजा दिलवाएँगे।” उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) से हस्तक्षेप की माँग की। फिर भी, ऐसे मामलों में सजा दर चिंताजनक रूप से कम है। उत्तर प्रदेश में 2020 के बाद भीड़ हिंसा के 85% मामले अदालत में लंबित हैं ।
- कानूनी चुनौतियाँ: गवाहों का डराना और सबूतों का हेरफेर।
- सामुदायिक पहल: स्थानीय नेताओं ने शांति समितियाँ बनाईं।
- राहत कार्य: पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद का वादा।
7. राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: चुप्पी तोड़ती आवाज़ें
इस घटना पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया सार्वजनिक नहीं हुई।
हालाँकि, विपक्षी नेताओं ने जोरदार आवाज़ उठाई। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने ट्वीट किया: “यूपी सरकार ने कानून व्यवस्था खो दी है।”
उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जवाब माँगा। उन्होंने कहा: “अल्पसंख्यकों को न्याय चाहिए।”
निष्कर्ष अल्पसंख्यक असुरक्षा: सवाल अभी बाकी हैं…
अलीगढ़ की यह घटना दुखद रूप से भारत में बढ़ती अल्पसंख्यक असुरक्षा का प्रतीक बन गई।
एक ओर पीड़ित परिवार न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
दूसरी ओर, सामाजिक विभाजन गहरा रहा है।
AMU के विवाद ने तनाव को और बढ़ाया। ऐसे में सवाल उठता है:
क्या धार्मिक भावनाएँ मानवीय जीवन से ऊपर हैं?
क्या अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का अधिकार नहीं?
जब तक ये सवाल जवाब नहीं पाते, तब तक ऐसी घटनाएँ समाज के मानवीय चेहरे पर धब्बा बनी रहेंगी।
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