एक होनहार खिलाड़ी… और एक खौफनाक अंत
टेनिस की दुनिया में नाम कमाने का सपना देख रही 25 वर्षीय राधिका यादव की कहानी अब देश भर में एक दर्दनाक चर्चा का विषय बन चुकी है। गुरुग्राम की रहने वाली इस राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी को उसी के पिता ने गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। शुक्रवार को राधिका का अंतिम संस्कार कर दिया गया, लेकिन उसके पीछे रह गई ढेरों अनुत्तरित बातें और एक समाज जो अब भी महिलाओं की सफलता को सहजता से स्वीकार नहीं करता।
पिता ने कबूला गुनाह, वजह—लोगों के ताने
राधिका यादव हत्या मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि उसके पिता दीपक यादव ने पुलिस के सामने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया। वजह? वह यह बर्दाश्त नहीं कर पाए कि गांव के लोग उन्हें ताना मारते थे कि वे अपनी बेटी की कमाई पर जी रहे हैं। ये ताने उनके आत्मसम्मान पर इतने भारी पड़े कि उन्होंने एक असहनीय कदम उठा लिया।
“मैं जब दूध लेने जाता था, लोग कहते थे—बेटी की कमाई पर पल रहा है। बहुत शर्मिंदगी होती थी। मैंने उससे अकादमी बंद करने को कहा, पर उसने मना कर दिया।” – दीपक यादव
दिल दहला देने वाला सवेरा
10 जुलाई की सुबह थी। राधिका अपने घर की रसोई में खाना बना रही थी। तभी पिता ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से गोली चला दी।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, चार गोलियां चलीं—तीन उसकी पीठ में और एक कंधे में।
घर में उस वक्त मां भी थीं, जो बुखार से जूझ रही थीं। राधिका के चाचा कुलदीप यादव ने जब गोलियों की आवाज सुनी तो भागकर पहुंचे—और जो देखा, वो जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे: राधिका खून से लथपथ पड़ी थी।
कौन थी राधिका? एक परिचय
राधिका यादव सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, एक प्रेरणा थी।
- जन्म: 23 मार्च 2000
- डबल्स में ITF रैंक: 113
- हरियाणा महिला डबल्स: 5वां स्थान
- पढ़ाई: स्कॉटिश हाई इंटरनेशनल स्कूल से 12वीं (कॉमर्स)
स्कूल के दिनों से ही टेनिस उसका जुनून था। वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई टूर्नामेंट खेल चुकी थी।
जब खेल रुक गया, लेकिन हौसला नहीं
एक कंधे की चोट ने राधिका का प्रोफेशनल करियर बाधित कर दिया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। कोचिंग के जरिए उसने एक टेनिस अकादमी शुरू की, जहां कई युवा खिलाड़ी ट्रेनिंग लेते थे।
इस अकादमी में उसके पिता ने करीब 2 करोड़ रुपये लगाए थे। शुरुआत में वे सहयोगी थे, लेकिन समय के साथ बदले समाज के तानों ने उनके मन में कड़वाहट भर दी।
‘करवां’ म्यूजिक वीडियो: विवाद का दूसरा चेहरा
राधिका ने हाल ही में “करवां” नाम के एक म्यूजिक वीडियो में काम किया था। इसे लेकर भी परिवार में तनाव था। कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि पिता को यह पसंद नहीं था, हालांकि वीडियो के सह-कलाकार इनाम उल हक का कहना है कि दीपक यादव ने वीडियो की तारीफ की थी।
सोशल मीडिया और एक नई पहचान की चाह
राधिका सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय थी।
- इंस्टाग्राम पर रील्स
- टेनिस से जुड़ी पोस्ट
- सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनने का सपना
लेकिन शायद यही उसकी आज़ादी और आत्मनिर्भरता उसके पिता को स्वीकार नहीं थी।
परंपरागत सोच और आधुनिक जीवनशैली का ये टकराव आज भी कई घरों में देखा जाता है।
अंतिम संस्कार: एक खामोश विदाई
शुक्रवार को वजीराबाद गांव में राधिका का अंतिम संस्कार किया गया।
करीब 150 लोग शामिल हुए।
उसके भाई धीरज ने चिता को अग्नि दी।
गांव में शोक और स्तब्धता का माहौल था।
लोगों के लिए यह विश्वास करना कठिन था कि एक पिता अपनी ही बेटी का हत्यारा बन सकता है।
एक परिवार जिसे खुशहाल माना जाता था, अचानक टूट गया।
मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक दबाव
राधिका यादव हत्या सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि एक मानसिक स्वास्थ्य की चेतावनी है।
दीपक यादव ने माना कि वह बीते 15 दिनों से डिप्रेशन में थे। समाज का दबाव, तानों की चोट और अहंकार की खरोंच ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया।
“जब कोई कहता है कि आप बेटी की कमाई पर जी रहे हैं, तो समाज में पुरुष होने का अहम टूटता है।”
यह मानसिकता बदलने की ज़रूरत है। बेटियों की कमाई पर गर्व करना चाहिए, न कि शर्म।
खेल जगत में हलचल
खेल जगत ने इस घटना पर गहरा दुख जताया। कई खिलाड़ियों और कोचों ने कहा कि यह घरेलू हिंसा की एक भयावह मिसाल है।
महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा अब सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं रह सकती। उनके घर भी सुरक्षित होने चाहिए।
कानूनी कार्रवाई: न्याय की दिशा में पहला कदम
दीपक यादव को गिरफ्तार कर एक दिन की पुलिस रिमांड में भेज दिया गया है।
अदालत ने इसे गंभीर मामला माना है और गहराई से जांच की मांग की है।
महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कानून सख्त हैं, लेकिन अब सोच भी सख्त होनी चाहिए।
एक समाज, एक सबक
राधिका यादव हत्या हमें तीन बड़े संदेश देती है:
- सामाजिक तानों का असर घातक हो सकता है।
- महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को सहजता से स्वीकारना जरूरी है।
- मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा अब और नहीं की जा सकती।
परिवार में संवाद और विश्वास की कमी ने एक ज़िंदगी छीन ली। ऐसे में अब जरूरी है कि हम समझें—बेटियों की सफलता परिवार की जीत होती है, हार नहीं।
महिला सशक्तिकरण की हकीकत
राधिका का मामला दर्शाता है कि आज भी महिला सशक्तिकरण एक जटिल यात्रा है। सपनों को संजोने वाली बेटियां जब समाज और परिवार के बीच झूल जाती हैं, तब ज़रूरत होती है सहयोग की, सम्मान की।
खेल, कला या किसी भी क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। पर उन्हें संरक्षण और सराहना दोनों चाहिए।
निष्कर्ष: राधिका की मौत नहीं, चेतावनी है
राधिका यादव की हत्या एक दुखद घटना है, लेकिन यह समाज के लिए चेतावनी भी है।
अब वक्त आ गया है कि हम
- महिलाओं की आज़ादी को सम्मान दें,
- मानसिक समस्याओं को गंभीरता से लें,
- और परंपराओं से आगे बढ़कर सोचें।
राधिका की मौत व्यर्थ न जाए।
उसके सपनों की चिता से निकलने वाली राख हमें जागरूक करे, हमें बदलने को मजबूर करे।
यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी — यह समाज की सोच का एक दर्दनाक आईना है।
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